मैं जानौं पढ़ना भला, पढ़ने ते भल लोग
रामनाम सों प्रीति कर, भावे निन्दो लोग
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि मैं पहले पढ़ना लिखना अच्छा समझता था पर अब तो ऐसा लगता है कि पढ़ने लिखने से तो योग साधना, ध्यान और भक्ति ही करना अच्छा है। रामनाम से प्रेम करना ही ठीक है चाहे लोग उसकी कितनी भी निंदा करें।
नहिं कागद नहिं लेखनी, निहअच्छर है सोय
बांचहि पुस्तक छोडि़के, पंडित कहिये सोय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि न तो उसके पास कागज है न कलम है और वह एकदम निरक्षर है पर अगर उसने भगवान से प्रेम कर लिया तो वह ज्ञानी हो गया। उसने पुस्तक पढ़ना छोड़ दिया हो पर अगर वह ध्यान करता है तो उसे ही विद्वान मान लेना चाहिए।
पढ़ी गुनी पाठक भये, कीर्ति भई संसार
वस्तु की तो समुझ नहिं, ज्यूं खर चंदन भार
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि पढ़ लिखकर शिक्षित हो गये संसार में कीर्ति फैल गयी परंतु जब तक परमात्मा की समझ नहीं आयी तब सब व्यर्थ हैं। उसे तो यू समझना चाहिए जैसे गधे के ऊपर चंदन का तिलक लगा हो।
रामनाम सों प्रीति कर, भावे निन्दो लोग
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि मैं पहले पढ़ना लिखना अच्छा समझता था पर अब तो ऐसा लगता है कि पढ़ने लिखने से तो योग साधना, ध्यान और भक्ति ही करना अच्छा है। रामनाम से प्रेम करना ही ठीक है चाहे लोग उसकी कितनी भी निंदा करें।
नहिं कागद नहिं लेखनी, निहअच्छर है सोय
बांचहि पुस्तक छोडि़के, पंडित कहिये सोय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि न तो उसके पास कागज है न कलम है और वह एकदम निरक्षर है पर अगर उसने भगवान से प्रेम कर लिया तो वह ज्ञानी हो गया। उसने पुस्तक पढ़ना छोड़ दिया हो पर अगर वह ध्यान करता है तो उसे ही विद्वान मान लेना चाहिए।
पढ़ी गुनी पाठक भये, कीर्ति भई संसार
वस्तु की तो समुझ नहिं, ज्यूं खर चंदन भार
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि पढ़ लिखकर शिक्षित हो गये संसार में कीर्ति फैल गयी परंतु जब तक परमात्मा की समझ नहीं आयी तब सब व्यर्थ हैं। उसे तो यू समझना चाहिए जैसे गधे के ऊपर चंदन का तिलक लगा हो।
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