GOPILANGERI@GMAIL.COM, GODISINSIDEUS@GMAIL.COM

Monday, March 14, 2011

आज का चिन्तन 2

याद रहे बाबा साँई का कहना था कि, अच्छाई करने के लिये बहुत प्रयत्न करना पड़ता है, और बुराईयाँ अनायास ही इकट्ठी हो जाती है। बुरे संसकार तो जन्मजन्मांतरो से छाये हुए है। पर तुम्हे अच्छे संस्कारों को पुरूषार्थ करके जागृत करना पड़ता है। फलदार वृक्ष लगाने के लिये वर्षों काम करना पड़ता है, लेकिन बेशर्म के झाड़ तो अनायास ही खड़े हो जाते है। बिना किसी काम प्रयास के बेशर्म के पौधे उग जाते है। शायद इसलिए उनका नाम बेशरम पड़ गया है। बुराइयां हमारि चेतना की भूमि पर बेशर्म के पौधों की भांति उगती जा रही है। चित की भूमि बशर्म के पौधों से भरी पड़ी है। मै चाहता हूँ उन पौधों को उखाड़कर फैंका जाए। बेशर्म के पौधे को कितनी ही बार काट दो वह पुनः अंकुरित हो जाता है। जब तक कि उसे जड़ से नहीं उखाड़ दिया जाए।




इतना ही नही जड़ से उखाड़ने के बाद उसके खट्टा मीठा तक डाला जाए तांकि दुबारा वह उग न सके। बुराई एक बेशरम का पौधा है। एक बार लग जाए तो बिना पानी खाद के हरा भरा बना रहता है। उसे नष्ट करने के लिये काम करना पड़ता है। बुराई को हटाने के लिये बहुत कड़ा पुरूषार्थ करना पड़ता है। अच्छाई के बीज डालकर उसे अंकुरित करने के लिये और उस अंकुर को वृक्ष बनाने के लिए भी बैसा ही काम करना पड़ता है, जैसे बुराई को हटाने के लिये।



No comments:

Post a Comment