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Monday, March 14, 2011

सर्वतोमुखी विकास

सर्वतोमुखी विकास




जब हमारी दृष्टि किसी सुखी पर पड़े तो हम उसे देखकर प्रसन्न हो जाएं। ऐसे ही जब हमारी दृष्टि किसी दु:खी पर पड़े तो हम उसे देखकर करुणित हो जाएं। तब उन सुखी व दु:खी व्यक्तियों में एकता आ जायेगी। प्रीति का अभाव ही परस्पर संघर्ष का कारण है। कर्तव्य-परायणता से ही संघर्ष का अंत होता है। जब सेवा और प्रीति तो रहे, पर उसमें अहम् भाव की गंध न रहे तब अनंत के मंगलमय विधान से तद्रूपता होती है। जो अपना सब कुछ प्रसन्नतापूर्वक नहीं दे सकता, वह किसी का प्रेमी नहीं हो सकता, क्योंकि प्रेम बातों से ही नहीं होता। यदि हम मिले हुए का दुरुपयोग न करें, तो किसी से शासित नहीं रह सकते। हम इस बात का इंतजार न करें कि कोई उद्धारक आयेगा और पुíनर्माण करेगा, हम जिसमें अपूर्व हैं उससे अधिक अपूर्व कोई और नहीं आएगा। सुंदर समाज का निर्माण तो केवल मानवता से ही संभव है। अपनी विचार-प्रणाली का आदर करें, तभी समाज में सर्वतोमुखी विकास संभव है। हमें अपनी प्रणाली से अपने को सुंदर बनाना है। समाज को सुंदरता अभीष्ट है, प्रणाली नहीं।

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