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Monday, March 14, 2011

खुद को बदलो

खुद को बदलो




एक बार विनोबा भावे से मिलने एक महिला आई। वह काफी परेशान लग रही थी। उसने विनोबा जी को श्रद्धापूर्वक प्रणाम करके कहा, 'मेरा जीवन तो नरक हो गया है। मैं बहुत दुखी हूं। जीवन में कोई उम्मीद नहीं नजर आती।' विनोबा जी ने उससे उसके दुख का कारण पूछा तो उसने बताया, 'मेरा पति रोज रात को शराब पीकर घर लौटता है। आते ही अनाप-शनाप बोलने लगता है। मैं उसे इस हालत में देखकर अपने पर काबू नहीं रख पाती। गुस्से में मैं भी उसे बहुत भला-बुरा कहती हूं।'



विनोबा जी ने पहले कुछ सोचा फिर पूछा, 'तुम्हारे भला-बुरा कहने से क्या उसमें कुछ सुधार आया?' उस महिला ने कहा, 'नहीं, मामला और गड़बड़ हो गया है। मैं जब उसे डांटती हूं तो वह और भड़क जाता है और मुझे पीटने लग जाता है। घर में अजीब माहौल बन गया है। बच्चों पर न जाने इसका क्या असर पड़ता होगा। न जाने मेरे पड़ोसी क्या सोचते होंगे। मैं तो उसे समझा-समझाकर थक गई। एक बात और, मैंने उसकी शराब छुड़ाने के लिए व्रत रखना शुरू कर दिया है। मैं रोज उपवास करती हूं। सोचती हूं, शायद इसका कोई सकारात्मक परिणाम निकले।' इस पर विनोबा जी ने पूछा, 'उपवास करने से तुम्हारे क्रोध में कोई फर्क आया या पति को शराब पीकर आया देख तुम्हें अब भी उसी तरह गुस्सा आता है?' महिला ने कहा, 'उसके शराब पीने पर या उसे उस हालत में देख कर मुझे अब भी गुस्सा आता है। मेरे व्रत रखने से अब तक तो कोई खास फर्क नहीं पड़ा। '



तब विनोबा जी ने कहा, 'अगर हालात बदलने हों तो पहले तुम्हें अपने आप को बदलना होगा। गुस्सा करके तुमने देख लिया। उससे कुछ हासिल न हो सका। अब व्रत कर रही हो, लेकिन उसका भी असर नहीं हो रहा है। इसका कारण है कि तुमने अपने को अंदर से नहीं बदला। तुम्हें अपने मन को बदलाव के लिए तैयार करना होगा और यह दृढ़ इच्छाशक्ति से ही संभव है। व्रत रख लेने भर से बदलाव नहीं आते। दूसरों में बदलाव लाने के लिए पहले तुम्हें खुद को बदलना होगा।'



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