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Monday, March 14, 2011

त्रिगुण रूप श्री दत्तात्रेय

श्री दत्तात्रेय या दत्त यानी ब्रह्मा-विष्णु-महेश का त्रिगुण रूप, जो राम-कृष्ण की तरह चिरंतन, चिरंजीव है, जो केवल दुष्टों का ही नाश नहीं करते, वरन अज्ञानरूपी अंधकार को भी दूर करते हैं, जिन्हें परब्रह्ममूर्ति सद्गुरु का अवतार माना गया है।




दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं। इसीलिए उन्हें 'श्री गुरुदेवदत्त' भी पुकारते हैं, जिनकी सेवा विभिन्न मार्गों से दत्त भक्तों द्वारा की जाती है, जिसमें गुरुचरित्र का पाठ भी शामिल है, जो मार्गशीर्ष शुद्ध 7 से मार्गशीर्ष 14, यानी दत्त जयंती तक पढ़ा जाता है।



इसके कुल 52 अध्याय में कुल 7491 पंक्तियाँ हैं। 'गुरुचरित्र' वेदतुल्य माना गया है। इसमें श्री पाद, श्री वल्लभ और श्री नरसिंह सरस्वती की अद्भुत लीलाओं व चमत्कारों का वर्णन है। इस ग्रंथ का वाचन चार तरह से किया जाता है। कुछ लोग प्रतिदिन निश्चित 51 या 100 पंक्तियाँ, तो कुछ केवल 5 पंक्तियाँ ही पढ़ते हैं।



कुछ लोग साल में केवल एक बार ही इसे एक दिन में या तीन दिन में पढ़ते हैं जबकि अधिकांश लोग दत्त जयंती पर मार्गशीर्ष शुद्ध 7 से मार्गशीर्ष 14 पर पढ़कर पूरा करते हैं। अधिकांश दत्त मंदिरों और दत्तभक्तों के यहाँ 'गुरुचरित्र' का श्रद्धा-भक्ति के साथ पाठ और इसी के साथ दत्त महामंत्र 'श्री दिगंबरा दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा' का सामूहिक जप भी सुनाई देता है।







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