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Monday, March 14, 2011

संस्कारवान व्यक्ति सबको प्रिय

सभ्य समाज में रहने वाले व्यक्ति की पहचान के लिए उसका संस्कारवान होना आवश्यक है। अच्छे संस्कार ही पर्याय है सभ्यता का। यदि हम देखने में सुंदर हैं, लेकिन संस्कारों से शून्य अर्थात दरिद्र है तो हमारी सुंदरता का कोई मूल्य नहीं है।




संस्कारों के माध्यम से आदर्शो के पुंज एकत्र किए जा सकते हैं। सज्जनता हमें अपने आचरण से दीर्घकाल तक जीवित रखती है। संस्कारवान व्यक्ति जीवन में आने वाली समस्याओं का सामना करने की साम‌र्थ्य रखता है। इसके साथ ही हर व्यक्ति भी सुस्कारित मानव को ही पसंद करते है नैतिकता का सीधा संबंध आत्मबल से है जो संस्कारों से ही निर्मित होती है। हमारे गुण, कर्म, स्वभाव में घुले-मिले कुसंस्कारों को हमारे द्वारा अर्जित संस्कारों की शक्ति ही उन्हें अप्रभावित करती है। आत्मा परमात्मा का ही स्वरूप है, जो हमारे शरीर रूपी मंदिर में सदैव विराजमान रहते हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम अपने आचरण से किसी भी तरह आत्मा को कलुषित न होने दें। हमसे जुडी हुई हमारी सामाजिक जिम्मेदारियां भी है जिनका निर्वहन भी हम अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व के माध्यम से करने में तभी समर्थ होंगे जब हम सुसंस्कारिता के क्षेत्र में संपन्न होंगे। संस्कार हमारे आत्मबल का निर्माण करते हैं। शालीनता, सज्जनता, सहृदयता, उदारता, दयालुता जैसे सद्गुण सुसंस्कारिता के लक्षण हैं। आधुनिकता के इस युग में संस्कारों की मजबूत लकीर धूमिल होती जा रही है, हमें इसे बचाना होगा। इस दिशा में विवेकशील लोगों को आगे आना होगा। यह मानवता, नैतिकता और समाज के विकास के लिए अति आवश्यकता है। सामाजिक संतुलन सुसंस्कारिता के आधार पर ही कायम रखा जा सकता है अन्यथा सर्वत्र अराजकता का ही बोल बाला हो जाएगा, जो एक सभ्य समाज के लिए असहनीय बात होगी, क्योंकि हर कोई सुख, शांति, प्रगति और सम्मान चाहता है जो संस्कारों के द्वारा ही संभव है। संस्कार हमें नैतिकता की शिक्षा देते हैं। मानवता इसी से पोषित होती है। चरित्र निर्माण के लिए संस्कारों की पृष्ठभूमि निर्मित करनी होती है। रहन-सहन का तरीका, जीवन जीने की कला, लोकव्यवहार आदि सदाचार से संबंधित बातें है जो हमें जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और प्रगति के मार्ग पर अग्रसर करती है। समाज में भाई चारा और आत्मीयता का विस्तार भी नैतिकता और मानवता के माध्यम से ही संभव है। यदि हम सुखी होंगे तो हमारे पडोसी भी सुखी होंगे इस भावना को यदि हम अपने परिवार से ही विकसित करेंगे तो निश्चय ही आत्मीयता का विस्तार होगा।

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