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Monday, March 14, 2011

भक्ति का मार्ग

भक्ति का मार्ग




यह विदित है कि भक्ति वहीं है जहां अहंकार नहीं है। पतन का मार्ग अहंकार से होकर जाता है। भक्ति को समझने के लिए हमें स्वयं को अहंकार से मुक्त करना होगा। जब तक हम रुचियों के भिन्न अपेक्षाएं और अहंकार को समाप्त नहीं करते तब तक हम बाबा साँई से प्रेम नहीं कर सकते और न ही उसकी शरण पाने की उम्मीद करें। अहंकार से मुक्ति पाने के लिए मनीषियों की संगति करनी चाहिए, श्रेष्ठ गुरु की शरण में जाना चाहिए। जिन्होने भगवान के असीम प्रेम का रसपान किया है, उन्होंने ही भक्ति की वास्तविक परिभाषा को समझा है। भक्ति क्रोध, वासना, लालच आदि विसंगतियों से मुक्ति दिलाने का सहज मार्ग है। बाबा को प्रेम करने का अर्थ है उनके हर हिस्से को प्रेम करना, जिसमें सभी जीव शामिल हैं।

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