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Monday, March 14, 2011

त्रिदेवों के शक्ति-पुंज हैं दत्तात्रेय

भगवान के प्रत्येक अवतार का एक विशिष्ट प्रयोजन होता है। श्रीदत्तात्रेयके अवतार में हमें असाधारण वैशिष्ट्य का दर्शन होता है। वे योगियों के परम ध्येय होने के कारण सर्वत्र गुरुदेव कहे जाते हैं। भगवान दत्तात्रेयका असाधारण कार्य है- अखण्ड रूप से ज्ञानदानकरते रहना। इस प्रकार ये गुरु के रूप में अपने भक्तों को अध्यात्म-ज्ञान का उपदेश देकर सांसारिक दुख से मुक्त करके उनकी अविद्या की निवृत्ति करते हैं। ये भक्त के हृदयाकाश में प्रकाशित होकर उसके अज्ञान-रूपी अंधकार को नष्ट कर देते हैं। स्वत:सिद्ध प्रकाश से अपने स्वरूप में विराजमान रहने से ये देव कहलाते हैं। सद्गुरुदेवदत्तात्रेयअवतार लेने से आज तक प्राणियों पर अनवरत उपकार एवं उनका उद्धार करते चले आ रहे हैं। उनके अवतार का प्रयोजन सृष्टि के अन्त तक विद्यमान रहेगा। मनुष्य का सबसे बडा शत्रु उसका अज्ञान ही है।




भगवान दत्तात्रेयके अवतार-चरित्र का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि उनका आविर्भाव सृष्टि के प्रारंभिक सत्र में ही हो गया था। ब्रह्माजीके मानसपुत्र महर्षि अत्रि इनके पिता तथा कर्दम ऋषि की कन्या और सांख्यशास्त्रके प्रवक्ता कपिलदेव की बहिन सती अनुसूयाइनकी माता थीं। भगवान दत्तात्रेयका प्रादुर्भाव महर्षि अत्रि के चरम तप का पुण्यफलतथा सती अनुसूयाके परम पतिव्रता होने का सुफल है। प्राचीन ग्रंथों में ऐसी कथा पढने को मिलती है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश जब परमसतीअनसूयाकी अत्यन्त कठोर परीक्षा लेने उनके आश्रम में पहुँचे तो माता अनुसूयाने उन्हें अपने सतीत्व के तेज से शिशु बना दिया। इसी कारण दत्तात्रेयको त्रिदेवोंकी समस्त शक्तियों से सम्पन्न माना जाता है।



श्रीमद्भागवत में महर्षि अत्रि एवं माता अनुसूयाके यहां त्रिदेवोंके अंश से तीन पुत्रों के जन्म लेने का उल्लेख मिलता है। इस पुराण के मत से ब्रह्माजीके अंश से चन्द्रमा, विष्णुजीके अंश से योगवेत्तादत्तात्रेयऔर महादेवजीके अंश से दुर्वासाऋषि अनुसूयामाता के गर्भ से उत्पन्न हुए। लेकिन वर्तमान युग में ब्रह्मा-विष्णु-महेशात्मक त्रिमुखीदत्तात्रेयकी उपासना ही प्रचलित है। इनके तीन मुख, छह हाथ वाला त्रिदेवमयस्वरूप ही सब जगह पूजा जा रहा है। दत्तमूर्तिके पीछे एक गाय तथा इनके आगे चार कुत्ते दिखाई देते हैं। औदुंबर वृक्ष के समीप इनका निवास बताया गया है। विभिन्न मठों, आश्रमों और मंदिरों में इनके इसी प्रकार के श्रीविग्रहोंका दर्शन होता है।



देवर्षिनारद नारदपुराणमें त्रिदेवात्मकभगवान दत्तात्रेयकी स्तुति में कहते हैं-



जगदुत्पत्तिकत्र्रेचस्थिति-संहारहेतवे।

भवपाश-विमुक्तायदत्तात्रेयनमोऽस्तुते॥



संसार के बंधन से सर्वथा मुक्त तथा संसार की उत्पत्ति, पालन और संहार के मूल कारण-स्वरूप भगवान दत्तात्रेयको मेरा नमस्कार है।



योगियों का ऐसा मानना है कि भगवान दत्तात्रेयप्रात:काल ब्रह्माजीके स्वरूप में, मध्याह्न के समय विष्णुजीके स्वरूप में तथा सायंकाल शंकरजीके स्वरूप में दर्शन देते हैं। तभी तो शास्त्रों में इनकी प्रशंसा में कहा गया है-



आदौ ब्रह्मा मध्येविष्णुरन्तेदेव: सदाशिव:।

मूर्तित्रय-स्वरूपायदत्तात्रेयनमोऽस्तुते॥



दिन के प्रारंभ में ब्रह्मा-रूप, मध्य में विष्णु-रूप और अन्त में सदाशिवरूप धारण करने वाले त्रिमूर्ति-स्वरूप भगवान दत्तात्रेयको नमस्कार है।



तन्त्रशास्त्रके मूल ग्रन्थ रुद्रयामल के हिमवत् खण्ड में शिव-पार्वती के संवाद के माध्यम से श्रीदत्तात्रेयके वज्रकवचका वर्णन उपलब्ध होता है। इसका पाठ करने से असाध्य कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं तथा सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। इस कवच का अनुष्ठान कभी भी निष्फल नहीं होता। इस कवच से यह रहस्योद्घाटनभी होता है कि भगवान दत्तात्रेयस्मर्तृगामीहैं। यह अपने भक्त के स्मरण करने पर तत्काल उसकी सहायता करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ये नित्य प्रात:काशी में गंगाजीमें स्नान करते हैं। इसी कारण काशी के मणिकर्णिकाघाट की दत्तपादुकाइनके भक्तों के लिये पूजनीय स्थान है। वे पूर्ण जीवन्मुक्त हैं। इनकी आराधना से सब पापों का नाश हो जाता है। ये भोग और मोक्ष सब कुछ देने में समर्थ हैं।



प्राचीनकाल से ही सद्गुरु भगवान दत्तात्रेयने अनेक ऋषि-मुनियों तथा विभिन्न सम्प्रदायों के प्रवर्तक आचार्यो को सद्ज्ञान का उपदेश देकर कृतार्थ किया है। इन्होंने परशुरामजीको श्रीविद्या-मंत्र प्रदान किया था। त्रिपुरारहस्य में दत्त-भार्गव-संवाद के रूप में अध्यात्म के गूढ रहस्यों का उपदेश मिलता है। ऐसा भी कहा जाता है कि शिवपुत्रकार्तिकेय को दत्तात्रेयजीने अनेक विद्याएं प्रदान की थीं। भक्त प्रह्लाद को अनासक्ति-योग का उपदेश देकर उन्हें अच्छा राजा बनाने का श्रेय इनको ही जाता है। सांकृति-मुनिको अवधूत मार्ग इन्होंने ही दिखाया। कार्तवीर्यार्जुनको तन्त्रविद्याएवं नार्गार्जुनको रसायन विद्या इनकी कृपा से ही प्राप्त हुई थी। गुरु गोरखनाथ को आसन, प्राणायाम, मुद्रा और समाधि-चतुरंग योग का मार्ग भगवान दत्तात्रेयने ही बताया था। परम दयालु भक्तवत्सल भगवान दत्तात्रेयआज भी अपने शरणागत का मार्गदर्शन करते हैं और सारे संकट दूर करते हैं। मार्गशीर्ष-पूर्णिमा इनकी प्राकट्य तिथि होने से हमें अंधकार से प्रकाश में आने का सुअवसर प्रदान करती है।



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