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Monday, March 14, 2011

कोशिशों के बगैर

कोशिशों के बगैर




जीवन में कुछ चीजें हम प्रयास करके प्राप्त करते हैं और कुछ चीजें बगैर कोशिश के ही मिल जाती हैं। अक्सर ऐसा होता है कि हम जो खोजने निकलते हैं, उसके बदले कोई दूसरी वस्तु मिल जाती है जो हमारे बहुत काम की होती है। लेकिन इसका कोई नियम नहीं होता। यह कोई जरूरी नहीं कि हमारी हर कोशिश के बदले कुछ न कुछ अतिरिक्त हासिल हो ही जाए। अतिरिक्त की कौन कहे, कई बार कठिन प्रयासों के बावजूद कुछ भी हाथ नहीं लगता। फिर भी हम ऐसे संयोग की उम्मीद जरूर रखते हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि हम भाग्य भरोसे जीना चाहते हैं या कर्म से जी चुराते हैं, लेकिन अपने आप कुछ मिल जाए, यह आकांक्षा जरूर मन में रहती है। यही इच्छा हमें आशावादी बनाए रखती है और काफी हद तक आस्थावान भी। यानी हमारे भीतर यह भाव होता है कि हम जो कर रहे हैं उतना ही नहीं, उसके अलावा भी कुछ मिल जाए। यह आशा हमारी कोशिशों की गति को और तेज करती है।



इन सबके बावजूद जिसने भी बाबा साँई का श्रद्दा और सबूरी का सन्देश हमेशा याद रखा समझ लेना उसके लिये कोई भी काम मुश्किल नही रह जाता। यह मेरा मानना है और बखूबी आजमाया हुआ भी।



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