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Monday, March 14, 2011

कुत्ते की पूँछ - पंडितजी व लक्ष्मण (बदमाश)

पंडितजी चुपचाप बैठे अपने भविष्य के विषय में चिंतन कर रहे थे

उन्हें पता ही नहीं चला कि कब एक आदमी उनके पास आकर खड़ा हो गया है
जब पंडितजी ने कुछ ध्यान न दिया तो, उसने स्वयं आवाज दी




"राम-राम पंडितजी
"



पंडितजी चौंक गये




"क्या बात है, किस सोच में पड़े हो ?"



पंडितजी ने देखा तो देखते ही रह गये
उनके सामने लक्ष्मण खड़ा था




"लक्ष्मण...तुम...
"



"हां पंडितजी
"



"कब आये ?" -पूछा पंडितजी ने




"बस सीधे आपके पास ही चला आ रहा हूं
" लक्ष्मण पंडितजी के पास बैठ गया




पंडितजी अभी भी उसे एकटक देखे जा रहे थे
कोई दो साल के बाद लक्ष्मण को देखा था
लक्ष्मण शिरडी का मशहूर बदमाश था
दो साल की सजा भुगतने के बाद अब वह जेल से सीधा आ रहा था
लक्ष्मण का इस दुनिया में कोई न था
वह एकदम अकेला था
आवारागर्दी, चोरी, गुंडागर्दी, छेड़छाड़, मारपीट करना ही उसके काम थे




लक्ष्मण बोला - "क्या बात है, बड़े चुपचाप और उदास से बैठे हैं आज आप ?"



"हां
" - पंडितजी ने एक गहरी सांस छोड़ते हुए कहा




"क्या बात हो गयी ?"



"कुछ न पूछ लक्ष्मण ! इस गांव में एक चमत्कारी बाबा आया है
उसने मेरा सारा धंधा-पानी ही चौपट कर दिया है
अब तो भूखों मरने की नौबत आ गयी है
"



लक्ष्मण आश्चर्य से बोला - "कौन है वह ?"



"लोग उसको साईं बाबा कहते हैं
"



"अच्छा कहां का है वह ?"



"क्या पता ?" पंडितजी ने कहा - "तुम अपना हालचाल कहो
"



"बस ! सीधा जेल से छूटते ही यहां चला आ रहा हूं
" लक्ष्मण मुस्कराया - "यदि तुम कहो तो बाबा को अपना चमत्कार दिखा दूं
" और वह हँसने लगा




वैसे इससे पहले कई बार लक्ष्मण की सहायता से पंडित अपने विरोधियों को धूल चटवा चुका था
वह सोचने लगा, सांप की उस चमत्कारी घटना के कारण, जो स्वयं उसके साथ घटित हुई थी, वह भुला न पा रहा था




"बोलो पंडितजी ! क्या विचार है ?"



"कोशिश कर लो !"



"कोशिश क्यों ? मैं करके दिखा दूंगा
एक ही दिन में छोड़कर भाग जाएगा
" लक्ष्मण हँसने लगा




"जैसी तुम्हारी इच्छा
"



"क्या मैं तुम्हारे लिए इतना छोटा-सा काम नहीं कर सकता हूं ?" लक्ष्मण ने कहा - "आपके तो बहुत अहसमान हैं मुझ पर
"



"पंडित चुप रह गया
"



"कहां रहता है वह चमत्कारी बाबा ?"



"द्वारिकामाई मस्जिद में
"



"क्या पता, कभी वह मुसलमान बन जाता है और कभी हिन्दू ! क्या है वह, कुछ पता नहीं
"



"ठीक है, मैं देख लूंगा उसे
"



"जरा सावधानी से
" पंडित बोला - "सुना है, बड़ा चमत्कारी है वह
"



"अच्छा-अच्छा
" लक्ष्मण बोला - "ख्याल रखूंगा
"



"ठीक है सुबह-शाम मेरे यहां आकर खाना खा गया जाया करो
रात मैं बरामदा सोने के लिए है ही
"



लक्ष्मण चला गया




पंडित चिंता में पड़ गया
कहीं फिर उसने आत्मघाती कदम तो नहीं उठा लिया
यदि चमत्कार हो गया तो इस बार साईं बाबा उसे माफ नहीं करेगा
वह परेशान था कि आखिर यह साईं है क्या ?



लक्ष्मण पंडित के पास से उठकर सीधे द्वारिकामाई मस्जिद गया
टूटी-फूटी द्वारिका मस्जिद का कायाकल्प देखकर वह हैरान रह गया
मस्जिद में चहल-पहल थी
साईं बाबा की धूनी जली हुई थी
वह उनकी धूनी के पास जाकर बैठ गया




साईं बाबा के पास उनके शिष्य बैठे थे
लक्ष्मण ने देखा, साईं बाबा कोई विशेष नहीं है
दुबला-पतला, इकहरा बदन है
एक ही हाथ में जमीन सूंघ जाएगा
हां, चेहरे पर एक अजीब-सा आकर्षक-तेज अवश्य था
"



साईं बाबा ने लक्ष्मण की ओर नजर उठाकर भी न देखा
अजनबी होने के बावजूद उससे पूछताछ न की




शिष्यगण चले गए
लक्ष्मण अकेला बैठा रह गया




उसकी उपस्थिति की सर्वथा उपेक्षा कर साईं बाबा आँखें मूंदकर लेट गए
मौका अच्छा जानकर, लक्ष्मण बाबा को धमकी देने के बारे में विचार कर रहा था




इससे पहले कि वह कुछ बोलता, साईं बाबा ने स्वयं कहा -



"मैं जानता हूं कि तू मुझे मारने आया है
"



यह बात सुनते ही लक्ष्मण बुरी तरह से चौंक गया
वह बुरी तरह घबरा गया




"मार, मार दे मुझे और अपनी इच्छा पूरी कर ले
"



साईं बाबा का चेहरा बुरी तरह से तमतमा गया




लक्ष्मण को काटो तो खून न था
वह काठ के समान जड़ होकर रह गया
साईं बाबा का रौद्र रूप देखकर वह घबरा गया
उसका शरीर पसीने से तर-ब-तर हो गया




"कोई हथियार लाया है या खाली हाथ आया है?" - साईं बाबा बोले




वह घबरा गया




"बोल, जवाब दे
"



लक्ष्मण पसीने-पसीने हो गया
वह घबराकर साईं बाबा के चरणों पर गिर गया और गिड़गिड़ाने लगा - "क्षमा कर दो बाबा
क्षमा कर दो
"



"मेरे पैर छोड़
"



"जब तक आप मुझे क्षमा नहीं करेंगे, तब तक मैं आपके पैर नहीं छोड़ूंगा
आप तो अंतर्यामी हैं
मैं आपकी महिमा को न जान सका
"



"जा माफ किया
नेक आदमी बन
"



लक्ष्मण चुपचाप सिर झुकाकर चला गया




तब साईं बाबा खिलखिलाकर हँस पड़े
एकदम बच्चों के समान थी उनकी हँसी
यह अंदाजा लगाना मुश्किल था कि कुछ समय पूर्व उनका रूप बेहद रौद्र हो गया था




साईं बाबा के पास उनका एक शिष्य आया, तो वह बड़बड़ा रहे थे - "कुत्ते की पूँछ क्या भला कभी सीधी हो सकती है ?"



शिष्य इस बात को समझ न पाया




लक्ष्मण ने पंडित के पास जाकर हाथ जोड़कर सारा किस्सा बताया, तो पंडित का मन ग्लानी, पश्चात्ताप से भर गया
वह साईं बाबा को मान गया
उसने साईं बाबा का विरोध करना बंद कर दिया और उनका परमभक्त बन गया




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